This Country Will Disappear Entirely From Earth
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यह देश पृथ्वी से पूरी तरह गायब हो जाएगा
यह दुनिया का पहला देश बनने वाला है धरती के नक्शे से गायब होने वाला।
यहां रहने वाले लोगों के पास ना अपना घर रहेगा, ना अपनी जमीन, ना अपना वतन। सरकार ने पूरे देश की 3D स्कैनिंग करनी शुरू कर दी है। एक-एक घर, मकान, बिल्डिंग, पेड़, पौधा,पत्थर सब कुछ स्कैन किया जा रहा है। आवर लैंड, आवर ओशन, आवर कल्चर आर द मोस्ट प्रेशियस एसेट्स ऑफ़ आवर पीपल। पूरे देश की सरकार को भी वर्चुअल वर्ल्ड में शिफ्ट करने का प्लान शुरू हो गया है।
नमस्कार दोस्तों, धरती के एक बड़े रहस्यम हिस्से में पेसिफिक ओशन के बीचोंबीच मौजूद है दुनिया की वन ऑफ द स्मालेस्ट कंट्रीज टूबा।
इसकी पपुलेशन सिर्फ 11,000 लोगों के आसपास। लेकिन यह छोटा सा देश इतिहास में एक बेहद डरावनी मिसाल बनने जा रहा है। टू वालू दुनिया का पहला ऐसा देश बन सकता है जिसकी पूरी आबादी को अपना घर, अपनी जमीन, अपना वतन हमेशा के लिए छोड़ना पड़े। वी आर सिंकिंग बट सो एवरीवन एल्स। और इसके पीछे सीधे तौर पर कारण है क्लाइमेट चेंज।
वैसे तो दोस्तों क्लाइमेट चेंज पूरी इंसानियत के लिए ही एक एग्जिस्टेंशियल थ्रेट है। लेकिन अभी के लिए पेसिफिक ओशन में मौजूद देश खासतौर पर सबसे ज्यादा क्राइसिस में है।
टवालू में क्या हो रहा है?
इसे समझने के लिए हमें इसकी लोकेशन और ज्योग्राफी को समझना जरूरी है। यह एक आइलैंड नेशन है। साउथ पेसिफिक ओशन में मौजूद एग्जैक्टली इस जगह पर। ऑस्ट्रेलिया इकलौती मेजर कंट्री है जो इसके पास लाई करती है और अगर लैंड एरिया से देखा जाए तो वेटिकन सिटी मोनाको और नाूरू के बाद यह दुनिया का चौथा सबसे छोटा देश है। टोटल में सिर्फ 26 स्क्वायर किलोमीटर की जमीन इनके पास है।
टवालू का देश नौ बहुत छोटे-छोटे आइलैंड्स से बना है। जिनमें से छह आइलैंड्स एटॉल्स हैं।
अब एटॉल्स क्या होते हैं?
यह भी यहां जान लेना जरूरी है। ये वोल्केनोस से बनते हैं। समुद्र के बीचों-बीच आप जानते ही होंगे। कई सारेवोल्केनोस मौजूद होते हैं जो टेक्टोनिक प्लेट्स में आई चेंजेस के कारण बनते हैं और बिगड़ते हैं। जब एक वोल्केनो धीरे-धीरे ठंडा होकर समुद्र में डूबने लगता है, नीचे जाने लगता है तो उसके आसपास मौजूद कोरल रह जाती है। टाइम के साथ-साथ ये कोरल्स उभर कर बाहर आने लगती हैं और इनमें मिट्टी और पत्थर जमा होते रहते हैं। जिससे धीरे-धीरे एटॉल्स की फॉर्मेशन होती है। ये एटॉल्स दिखने में रिंग शेप के होते हैं। जिनके बीच काफी शैलो पानी मौजूद होता है।लक्षद्वीप और अंडमान एंड निकोबार के कई आइलैंड्स इसी तरीके से एटॉल्स हैं जो वोल्केनोस के डूबने से बने हैं। लेकिन इसका सबसे बढ़िया एग्जांपल है मालदीव्स का देश। नक्शे पर देखोगे तो मालदीव्स का पूरा देश ही 26 अलग-अलग एटॉल्स से बना है।ऑलमोस्ट सभी आइलैंड्स यहां पर किसी ना किसी एटॉल का हिस्सा है और यह देखने से ही पता चल जाता है कि एक एटॉल कहां शुरू होता है और कहां खत्म होता है। अब बात कुछ ऐसी है दोस्तों एटॉल्स बाकी आइलैंड्स की तरह पानी के ऊपर ज्यादा ऊंचे नहीं उठते। इसी रीजन से मालदीव्स दुनिया की लोएस्ट लाइन कंट्री है। एवरेज ग्राउंड एलिवेशन सिर्फ 1.5 मीटर्स का है। और यही चीज टवालू के साथ भी है। टवालू भी दुनिया की वन ऑफ द लोएस्ट लाइन कंट्रीज में से एक है। एवरेज ग्राउंड एलिवेशन सिर्फ 2 मीटर ऊपर सी लेवल्स से। पूरी कंट्री का हाईएस्ट पॉइंट सिर्फ 4.6 मीटर्स पर है। इसका मतलब यह है कि जरा सी लहर या तूफान आने पर किनारों पर मौजूद घर, सड़क, खेत सब कुछ पानी में समा जाता है। मालदीव्स की कैपिटल सिटी का आइलैंड माले तो फिर भी थोड़ा चौड़ा सा है। लेकिन टुवालू का मेन आइलैंड देखिए फून फूटी। एक बहुत ही लंबा सांप जैसा फैला हुआ आइलैंड जिसकी चौड़ाई ना के बराबर है। मतलब इनके एयरपोर्ट का ड्रोन व्यू देखिए। आधी जगह तो आइलैंड पर इस एयर स्ट्रिप ने ही खा ली। और यही कारण है दोस्तों क्लाइमेट चेंज की वजह से। वैसे तो इन सभी लो लाइंग आइलैंड कंट्रीज पर एक बुरा असर पड़ेगा लेकिन टू वालू का नंबर सबसे पहले आएगा। आप सभी जानते होंगे दोस्तों क्लाइमेट चेंज की वजह से आर्कटिक और अंटार्कटिका में मौजूद बर्फ पिघल रही है। इस बर्फ के पिघलने से समुद्र में पानी का लेवल ऊपर उठ रहा है और टवालू के लिए सबसे बुरी खबर यह है टवालू में सी लेवल बाकी दुनिया के मुकाबले और भी ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है।
नासा के अनुसार 1993 और 2023 के बीच इन 30 सालों में टवालू में सी लेवल 15 सेंटीमीटर से बढ़ गया जो कि ग्लोबल एवरेज से डेढ़ गुना ज्यादा था। नासा की प्रेडिक्शन के अनुसार 2050 तक टू वालू में सी लेवल 20 से 30 सेंटीमीटर तक बढ़ जाएगा और 200100 तक 1 मीटर से बढ़ जाएगा। इसकी वजह से जितनी बाढ़ आती है देश में उसकी फ्रीक्वेंसी भी बहुत ज्यादा बढ़ जाएगी। आज के दिन साल में करीब 5 दिन बाढ़ आती है। लेकिन 2050 तक यह 25 दिन हो जाएगा और 200100 तक साल के 365 डेज में से 100 डेज फ्लडेड रहेंगे। नासा का कहना है कि अगर क्लाइमेट चेंज इसी ट्रैजेक्टरी से आगे बढ़ता रहा, तो 2050 तक टुवालू का क्रिटिकल इंफ्रास्ट्रक्चर और ज्यादातर हिस्सा हाई टाइड के समय समुद्र में डूबा रहेगा। इनके कैपिटल फूना फूटी आइलैंड पे जहां देश की 60% पापुलेशन रहती है वो आधा पानी में होगा और 2100 तक का एस्टिमेशन है कि 95% देश पानी के अंदर धुब जाएगा।
जब हम 200100 जैसे सालों की बात करते हैं तो अपने आप को इससे डिसअसोसिएट करना काफी आसान है। अरे क्या फर्क पड़ता है? मैं तो तब तक जिंदा नहीं रहूंगा लेकिन यहां परbबात दोस्तों 2050 की हो रही है। सिर्फ अगले 25 सालों में ही देश का क्रिटिकल इंफ्रास्ट्रक्चर पानी में डूब जाएगा। हम
में से ज्यादातर लोग जिंदा रहेंगे इसे विटनेस करने के लिए। इससे पता चलता है कि क्लाइमेट चेंज अब कोई फ्यूचर की प्रॉब्लम नहीं रही है। यह आज के दिन प्रेजेंट की प्रॉब्लम बन गई है। नासा ने यह प्रेडिक्शन सेटेलाइट से मिले डाटा के आधार पर किया है। टोटल 30 साल के सेटेलाइट डाटा का एनालिसिस किया गया। 1993 सेटेलाइट ऑल्टीमेट्री का इस्तेमाल करके उसने सी लेवल राइज का रिलायबल डाटा कलेक्ट किया जिसका इस्तेमाल साइंटिस्ट ने एक हाई रेजोल्यूशन डिजिटल एलिवेशन मॉडल बनाने के लिए किया जो फ्लड रिस्क को असेस करता है।
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लोगों को सिंपली ऊंचे इलाकों में मूव कर दिया जाए जहां पर एलिवेशन थोड़ी और ज्यादा है। लेकिन टू वालू के लोगों के पास यह ऑप्शन नहीं है क्योंकि टू वालू का देश लगभग फ्लैट है। जैसे मैंने कहा हाईएस्ट पॉइंट सिर्फ 4.5 मीटर्स ऊपर है सी लेवल से। यहां कोई ऊंचा हाई ग्राउंड ही नहीं है जाने के लिए अगर बाढ़ आ जाए तो। एक दूसरा ऑप्शन यह हो सकता है कि ह्यूमन इंटरवेंशन के जरिए टुवालू की ज्योग्राफी को ही बदल दिया जाए। जिस तरीके से दुबई ने पाम आइलैंड्स और वर्ल्ड आइलैंड्स बनाए हैं यहां भी इसी तरीके से आर्टिफिशियल आइलैंड्स बना दिए जाएं जो काफी ऊपर उठ के हों।
अब इस सॉल्यूशन में प्रॉब्लम है पैसा। टुवालू एक बहुत ही छोटा सा देश है 11,000 लोगों का। कोई इतना अमीर देश भी नहीं है। तो इनके पास पैसा कहां से आएगा खर्च करने के लिए?
लेकिन इसके बावजूद भी यह लोग यह चीज ट्राई कर रहे हैं। आइलैंड्स पर आर्टिफिशियली नई फ्लड फ्री लैंड क्रिएट की जा रही है। जैसा कि आप इन वीडियोस में देख सकते हो। 204 तक ये करीब 18-19 एकड़ की आर्टिफिशियल जमीन क्रिएट कर चुके हैं। जिसके ईयर तक सेफ रहने की उम्मीद है। इन्होंने 200100 की फ्लड रिस्क को लेकर यह नई जमीन क्रिएट करी है।
लेकिन उसके बाद क्या होगा और कितना पैसा खर्च करना पड़ सकता है इस चीज को मेंटेन करने के लिए?
यह सब एक बहुत बड़ा गैंबल है। इस तरह इन्होंने पानी को रोकने के लिए किनारों पर प्रोटेक्टिव बैरियर्स और दीवारें भी बनाई हैं। वी बी इंगेज टू कंस्ट्रक्ट 1400 मीटर्स ऑफ बर्न टॉप बैरियर्स अलोंग वि 200 मीटर्स ऑफ कंक्रीट सीवर एस वेल एज कंस्ट्रक्ट से रीफ टॉप यूनिट्स। मालदीव्स ने भी ऐसा ही किया है। लेकिन मालदीव्स के पास इससे कहीं ज्यादा और पैसा है क्योंकि टूरिज्म इंडस्ट्री मालदीव्स की काफी सक्सेसफुल है। थ्राइविंग है। टू वालू बेचारा एक रिमोट देश जहां आना ही बहुत मुश्किल चीज है। इनफैक्ट इस पूरे देश में कोई टूर गाइड टूर ऑपरेटर और एक सिंगल ऑर्गेनाइज्ड एक्टिविटी तक नहीं है। सरकार का मेजॉरिटी रेवेन्यू बाकी देशों के द्वारा डोनेट किए गए पैसे से आ रहा है। जिसमें यूके, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड ने सबसे ज्यादा पैसा कंट्रीब्यूट किया है ! तो कुछ हद तक क्लाइमेट रेजिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने की कोशिश की जा रही है।
साल्ट रेजिस्टेंट क्रॉप्स उगाए जा रहे हैं ताकि अगर समुद्र का पानी आ भी जाए तो वह डिस्ट्रॉय ना हो। लेकिन इस देश की ज्योग्राफी इतनी अनलकी है और रिसोर्सेज इतने लिमिटेड है कि खतरा बहुत ज्यादा बड़ा है। ऐसे में वर्ष के सिनेरियो के लिए इनकी सरकार ने प्लान बी पर भी काम करना शुरू कर दिया है। देश की पूरी आबादी का देश छोड़कर जाना। 2 साल पहले की ही खबर है। टुवालू ने ऑस्ट्रेलिया के साथ फाले पीली यूनियन ट्रीटी साइन करी। इस ट्रीटी में एक स्पेशल वीजा का प्रोविजन बनाया गया है जिसके जरिए ऑस्ट्रेलिया हर साल 280 टू वालू के सिटीजंस को परमानेंट रेजिडेंस देगा। इसे क्लाइमेट वीजा कहा जा रहा है। दुनिया के इतिहास में यह पहली बार है जब इस तरीके से किसी देश ने क्लाइमेट वीजा जारी किया हो। इस वीजा के लिए 16 जून को पहली बार एप्लीकेशन ओपन अप हुई थी और टवालू में 8750 से ज्यादा लोगों ने इसके लिए अप्लाई किया। यानी कि पूरे देश की 82% पॉपुलेशन ने देश छोड़ने के इस ऑप्शन को चुना। लेकिन अब ऑस्ट्रेलिया इन 8000 से ज्यादा लोगों में से उन 280 लोगों को कैसे चुनेगा जो देश छोड़कर माइग्रेट करेंगे?
क्या उनकी एजुकेशन क्वालिफिकेशन देखी जाए? क्या उनका जॉब पोटेंशियल देखा जाए या उनकी ऐज देखी जाए?
ऑस्ट्रेलिया ने इनमें से किसी भी ऑप्शन को नहीं चुना क्योंकि यह बाकियों के लिए अनफेयर होगा। क्लाइमेट चेंज का असर छोटे, बड़े और बूढ़े हर किसी पर पड़ेगा। इसलिए ऑस्ट्रेलिया ने कहा वो यहां पर लॉटरी सिस्टम का इस्तेमाल करेंगे। इन 8,000 लोगों के डॉक्यूमेंट्स वेरीफाई करने के बाद लॉटरी के आधार पर इनमें से 280 लोगों को चुना जाएगा। जिन्हें इस साल ऑस्ट्रेलिया में परमानेंट रेजिडेंसी मिलेगी। और फिर इन 280 लोगों को ऑस्ट्रेलियन सिटीजंस की तरह ही हेल्थ, एजुकेशन, हाउसिंग और एंप्लॉयमेंट बेनिफिट्स भी मिलेंगे। बस एक चीज होगी कि ये ऑस्ट्रेलिया की इलेक्शंस में वोट नहीं कर पाएंगे ऑस्ट्रेलिया के सिटीजंस की तरह। अब इमेजिन करके देखो हर साल इसी तरीके से 280 लोगों को लेता रहेगा तो 11,000 लोगों की पपुलेशन को 40 साल से भी कम का समय लगेगा पूरे देश को खाली करने में।
इसके अलावा फाली यूनियन ट्रीटी मे प्रावधान है कि क्लाइमेट चेंज के कारण चाहे कुछ भी हो जाए टवालू की फिजिकल बाउंड्रीज रहे या ना रहे लेकिन ऑस्ट्रेलिया टवालू को हमेशा एक सोवरन देश मानता रहेगा। और इंटरेस्टिंग चीज तो यह है कि क्लाइमेट वीजा के अलावा भी टबालू के सिटीजंस के पास और ऑप्शंस हैं। जैसे बाकी देशों के सिटीजंस के पास रहते हैं एजुकेशन के लिए या एंप्लॉयमेंट के लिए ऑस्ट्रेलिया या न्यूजीलैंड जाना। तो ऑलरेडी बहुत से टबालू के लोग इन दो कंट्रीज में माइग्रेट कर रहे थे और इन सबको मिलाकर अगर देखा जाए तो हर साल लगभग 4% पॉपुलेशन देश छोड़कर माइग्रेट कर रही है। अगर यही रेट चलता रहा तो अगले 17 सालों में आधा देश खाली हो जाएगा। अब ऐसे में सबसे बड़ा सवाल उठता है कि टवालू का होगा क्या? क्या यह देश एक देश कहलाने लायक रहेगा? मॉनटी वीडियो कन्वेंशनके अनुसार एक सोवरन देश के तौर पर रेग्निशन लेने के लिए एक देश के पास क्लियरली डिफाइंड टेरिटरी और परमानेंट पपुलेशन होना जरूरी है।
लेकिन अगर पूर देश पानी में डूब गया ना तो इनके पास एक डिफाइंड टेरिटरी रहेगी ना ही एक परमानेंट पपुलेशन। ऐसे में टवालू ने अपने सोवरन नेशन के स्टेटस को बचाने के लिए यूनाइटेड नेशंस से अपील करी है। यूनाइटेड नेशंस से मांग की गई है कि राइजिंग सी लेवल पर एक इंटरनेशनल ट्रीटी बनाई जाए जिससे अफेक्टेड कंट्रीज सोवरन नेशंस बनी रहे। इसके अलावा मैरिटाइम बाउंड्रीज को फिक्स करने की भी डिमांड की गई है ताकि अगर कोई देश डूब भी जाता है तो उसके एरिया पर उसके समुद्र पर आकर कोई और देश कब्जा ना जमा सके। टूवालू ने अपने कॉन्स्टिट्यूशन में भी एक अमेंडमेंट किया है। इस अमेंडमेंट के अनुसार उसने खुद को एक वर्चुअल स्टेट डिक्लेअर कर दिया है। लिखा गया है कि भले ही पूरे देश की जमीन पानी में क्यों ना डूब जाए लेकिन यह देश एक देश बना रहेगा। लोगों की सिटीजनशिप रहेगी और इस एरिया पर इसका अधिकार बना रहेगा।
इसी कारण से पूर देश की एक डिजिटल कॉपी भी बनाई जा रही है। देश में मौजूद हर एक घर, हर एक पेड़, हर एक चीज को 3D स्कैनिंग के जरिए स्कैन किया जा रहा है ताकि टू वालों को डिजिटली रिकक्रिएट किया जा सके। लोग अपनी सबस पसंदीदा चीजों को, अपनी मोस्ट वैल्यूड चीजों को स्कैन कर रहे हैं। मेमोरीज को भी डिजिटली रिकक्रिएट करने की कोशिश की जा रही है। कोई अपने दादा की कहानियों को स्टोर कर रहा है तो कोई फेस्टिवल डांसेस को। इन्हें खतरा है कि कहीं इनका पूर कल्चर भी ना खत्म हो जाए।पूरे देश की सरकार को भी डिजिटल वर्ल्ड में ट्रांसफर करने का प्लान है ताकि टुवालू के डूबने पर यह वर्चुअली काम करती रहे। इसके लिए डिजिटल पासपोर्ट्स बनाए जाएंगे जो सरकार के फंक्शन करने में सेंट्रल रोल प्ले करेंगे। इलेक्शंस या रेफरेंडम कराना हो, बर्थ, डेथ या मैरिज रजिस्ट्रेशन कराना हो, सारे काम इन्हीं पासपोर्ट्स की मदद से किए जाएंगे। टू वालू का मानना है कि इनके देश की डिजिटल कॉपी बनाना ना केवल इनकी सोवनिटी को बचाने में मदद करेगा बल्कि इनके कल्चरल हेरिटेज को भी प्रोटेक्ट किया जा सकेगा।
इसकी वजह से आवर लैंड आवर ओशन कल्चर आर द मोस्ट प्रेशियस पीपल टू देम सेट इन द फिजिकल वर्ल्ड मूव देम टू द क्लाउड इस तरीके से टू वालू की आत्मा जिंदा रहेगीअपना देश खो चुके लोग इस वर्चुअल वर्ल्ड में अपने हेरिटेज और एक दूसरे से कनेक्ट कर पाएंगे। टवालू के इस वर्चुअल स्टेट क स्टेटस को अभी तक ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड समेत 25 देश मान्यता दे चुक हैं। लेकिन अनफॉर्चुनेट बात यह है दोस्तों कि टवालू की कहानी सिर्फ इस एक देश की कहानी नहीं है। क्लाइमेट चेंज की वजह से टवालू के बाद कई सारे ऐसे और देश खतरे की लाइन में लगे हुए हैं।
नाू, किरीबाटी, मार्शल आइलैंड्स यहां रहने वाले लोगों के लिए सबसे अनफॉर्चूनेट चीज यह है कि इनका खुद का ना के बराबर कंट्रीब्यूशन था क्लाइमेट चेंज में। असलियत में वह बड़े-बड़े देश हैं अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस, इंडिया, चाइना जो असलियत में ज्यादातर कार्बन एमिशंस के पीछे रिस्पांसिबल हैं। G20 में आने वाले सिर्फ देश रिस्पांसिबल हैं 80% ग्लोबल एमिशंसके लिए। और इस सब का सबसे ज्यादा नुकसान किसे सहना पड़ रहा है? बेचारे टबालू जैसे छोटे आइलैंड नेशंस को जिनका कार्बन फुटप्रिंट ना के बराबर है। टवाल इज लिटरली थिंकिंग। यू मस्ट टेक एक्शन नाउ टू वालू की मदद करने वाला ऑस्ट्रेलिया का देश खुद एक बहुत बड़ा कंट्रीब्यूटर है जो और गैस ऑस्ट्रेलिया दूसरे देशों को एक्सपोर्ट करता है।
रशिया के बाद उससे सबसे ज्यादा कार्बन एमिशंस होते है हालांकि खुद ग्लोबल एमिशंस में ऑस्ट्रेलिया का कंट्रीब्यूशन सिर्फ 1% है। लेकिन उनके एक्सपोर्ट्स के द्वारा जो पोल्यूशन फैलता है, जो एमिशंस होते हैं, उसमें 4.5% कंट्रीब्यूशन आ जाता है ऑस्ट्रेलिया का। टवालू के प्राइम मिनिस्टर फेलेटीओ का कहना है कि ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में फॉसिल फ्यूल का एक्सपेंशन उनके देश के लिए डेथ सेंटेंस है और वो शांत बैठकर दूसरे देशों को उनका फ्यूचर डिसाइड नहीं करने देंगे। पुट इट प्लेनली इट इज ए डेथ सेंटेंस इफलार्ज नेशन कंटिन्यू टू इनक्रीस देयर इमिशन लेवल्स।
ऐसे में एक सवाल यह भी आपके मन में उठेगा कि ऑस्ट्रेलिया को क्यों इतनी पड़ी है? वो क्यों मदद करना चाहेगा डबालू की यहां पर ?
ऑस्ट्रेलिया को खुद यहां पर क्या मिल रहा है?
अब कुछ रीजन तो दोस्तों इसके पीछे ऑब्वियसली हमदर्दी है। ऑस्ट्रेलिया एक्चुअली में इन देशों की मदद करना चाहता है। इन छोटे देशों के सामने खुद को बड़े भाई की तरह देखता है। लेकिन क्लाइमेट के अलावा यहां पर कुछ जिओपॉलिटिकल स्ट्रेटेजिक रीज़ंस भी हैं। रिपोर्ट किया जा रहा है कि ऑस्ट्रेलिया ने पेसिफिक ओशन में चाइना के एक्सपेंशन को रोकने के लिए भी यह ट्रीटी की है। क्योंकि इस ट्रीटी में एक क्लॉज़ है। टू वालू ऑस्ट्रेलिया की सहमति के बिना सिक्योरिटी और डिफेंस मैटर्स में किसी भी देश से कोई पार्टनरशिप या एग्रीमेंट नहीं करेगा। यह क्लॉज़ ऑस्ट्रेलिया को डिफेंस मैटर्स में वीटो करने की पावर देता है और उसकी मर्जी के बिना टू आलू किसी भी देश के साथ डिफेंस पार्टनरशिप नहीं कर पाएगा।
असल में टूवालू उन 12 देशों में भी शामिल है जिनके ताइवान के साथ फॉर्मल डिप्लोमेटिक रिलेशंस हैं। यह देश ताइवान को एज अ कंट्री रेग्नाइज करता है लेकिन चाइना को नहीं। और इस पोजीशन को चेंज करने के लिए टवालू को चाइना की तरफ से कई बारी ऑफर्स भी मिले हैं। ऑस्ट्रेलिया से पहले टू वालू के ऑफिशियल्स ने चाइना के साथ बातचीत भी की । लेकिन यह ऑस्ट्रेलिया के लिए ठीक नहीं था। और पेसिफिक ओशन में ऑस्ट्रेलिया और चाइना एक तरीके से बड़े डायरेक्ट कॉम्पिटिटर्स हैं। ऑस्ट्रेलिया नहीं चाहता कि उसके आसपास चाइना का इन्फ्लुएंस बढ़े और इसी वजह से ऑस्ट्रेलिया ने टवालू के साथ ये लीगली बाइंडिंग ट्रीटी की।
इससे होगा क्या?
फ्यूचर में भी टवालू कभी चाइना को रेकॉग्नाइज नहीं करेगा। अब जैसा मैंने कहा दोस्तों टवालू इस एरिया में लोकेटेड इकलौता लो लाइन कंट्री नहीं है। पेसिफिक ओसन में देखिए कई सारे और ऐसे देश मौजूद है जिनका एलिवेशन कोई ज्यादा नहीं है। राइजिंग सी लेवल्स के कारण इन सभी देशों का एकिस्टेंस खतरे में है और ये सभी देश अलग-अलग तरीकों से लड़ रहे हैं इससे। किरीबाटी का एग्जांपल देखिए। 2014 में इस देश ने फीजी में 20 स्क्वायर किलोमीटर की जमीन खरीदी ताकि देश डूबने पर लोगों को यहां रीोकेट किया जा सके। मालदीव्स ने खुद एक समय पर इंडिया, श्रीलंका और ऑस्ट्रेलिया में जमीन खरीदने का प्लान बनाया था।
2012 में मालदीव्स ने ऑस्ट्रेलिया में जमीन खरीदने की कोशिश भी की थी, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ पाई। इसक सारे और पैसिफिक नेशंस खुद को बचाने के लिए नेचर की मदद ले रहे हैं। फीजी और सोलमन आइलैंड्स में कोस्टलाइंस पर मैंग्रोव्स की बड़े स्केल पर प्लांटेशन की जा रही है। मैंग्रोव्स ना सिर्फ लैंड इरोजन को रोकते हैं बल्कि ये समुद्र की लहरों के खिलाफ एक नेचुरल बैरियर की तरह भी काम करते हैं। ये लहरों की हाइट को अप टू 66% तक कम कर सकते हैं डिपेंडिंग ऑन द कंडीशंस। इसी तरीके से कोरल रीफ्स को भी रिस्टोर करने की कोशिश चल रही है।
यह रीफ्स किनारे पर टकराने से पहले ही लहरों की एनर्जी को अब्सॉर्ब कर लेते हैं जिससे कम होता है। मार्शल आइलैंड्स टोंगा, फीजी और सोलमन आइलैंड्स जैसे कई देशों ने टुवालू की तरह अपनी कोस्ट लाइंस पर सी वॉल्स भी बना लिए हैं ताकि पानी को अंदर घुसने से रोका जा सके। इन सभी अलग-अलग तरीकों से भले ही टू वालू और इन सभी देशों को डूबने से बचाया जा सके, लेकिन फ्यूचर और एक सिक्योर फ्यूचर में बहुत अंतर होता है। एक बात तो शोर शॉट कही जा सकती है कि इन आइलैंड्स पर रहने वाले के लिए रहना अब आसान नहीं होगा। इन देशों के पास कोई अनलिमिटेड पैसा नहीं ह तो आगे चलकर एक समय पर इन्हें डिसीजन लेना होगा कि किस आइलैंड को बचाया जाए और किस आइलैंड को डूबने दिया जाए।
यह सभी देश आने वाले समय में इन टेंपरेरी सॉलशंस की लूप में फंसे रहेंगे। असलियत में टू वालू की कहानी दोस्तों दुनिया भर में करोड़ों लोगों के लिए खतरे की घंटी है। अगर आप इस बात का शुक्र मना रहे हैं कि आप इन देशों में आज नहीं रहते तो ज्यादा खुश मत होइए क्योंकि सी लेवल राइज का खतरा दुनिया भर में 800 मिलियन लोगों को सहना पड़ेगा बाय द ईयर। मुंबई, कोलकाता और ढाका वो तीन शहर हैं जहां पर सबसे ज्यादा लोगों को खतरा है सी लेवल राइज से। इस नक्शे पर आप देख सकते हैं दुनिया भर में कितने एरियाज इस रिस्क पर हैं। अगर आप इनमें से किसी भी जगह पर रहते हैं आने वाले समय में साल भर साल फ्लडिंग का खतरा बढ़ता रहेगा। तक बताया जा रहा है ग्लोबल इकोनॉमिक कॉस्ट राइजिंग सी लेवल की $1 ट्रिलियन हो जाएगी। साल भर साल खतरा बढ़ता रहेगा।
कहीं आपका मकान पानी में ना डूब जाए। इस सब से बचने का एक ही सशन है। दुनिया के सभी देश दुनिया के सभी लोग साथ में मिलकर फाइट करें। क्लाइमेट चेंज के खिलाफ जल्दी से जल्दी हमें कोल, ऑयल और गैस का इस्तेमाल करना बंद करना होगा। दुनिया भर में मौजूद सभी कोयले पर चलने वाले पावर प्लांट्स को बंद करना होगा। जल्दी से जल्दी सारेएनर्जी सिस्टम्स को रिन्यूएबल एनर्जी पर शिफ्ट करना होगा। क्लाइमेट चेंज एक बहुत बड़ा मुद्दा है और हमारी जनरेशन की सबसे बड़ी लड़ाई है। आने वाले टाइम में मैं और बहुत से वीडियोस में इसकी बात करूंगा।
लेकिन अभी के लिए मैं आपको यह बताकर छोड़ना चाहूंगा कि ऐसी फाइट में सक्सेसफुल होना पॉसिबल जरूर है क्योंकि इंसानियत और दुनिया भर की सरकारें पहले भी ऐसा कर चुकी हैं। ओजोन होल के खिलाफ लड़ाई में। याद है ओजोन होल की दिक्कत जिसके बारे में हम स्कूल की किताबों में पढ़ते थे। यह एक ऐसी प्रॉब्लम है जिसे दुनिया के सभी लोग साथ में मिलकर सॉल्व करने में सक्सेसफुल रहे हैं। कैसे हो पाया यह पॉसिबल? यहां क्लिक
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